निर्भया की जान लेने वाले दरिदें आज भी सलाखों के पीछे मस्त- मीनू लालवानी
रिपोर्ट- केबीसी न्यूज
नीमच। मान बढ़ाती बेटिया और वीभत्स दृश्य आज यह कितना विडम्बना पूर्ण परिदृश्य रह रहकर हमारे सामने उभर कर आ रहा है कि एक तरफ तो हमारी बेटिया चारों दिशाओं में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है और दुसरी तरफ वह विभत्स दृश्य भी आंखों में खुन उतर आने की स्थिति निर्मित कर रहा है। यह बात आराध्या वेलफेयर सोसायटी की राष्ट्रीय संयोजक मीनू लालवानी ने प्रेस को जारी बयान में कही। उन्होने कहा कि हमारे देश की संस्कृति नारी के सम्मान के साथ इतिहास के पन्नों में व्यक्त है। उसके बाद भी आज जब 4.5 साल की मासूम से लेकर युवतियों की नर-पिशाच सामुहिक रूप से अस्मत लुटने में अपनी शान समझते है और मानवता को शर्मसार करने वाली पराकाष्टाओं को देश में रह कर दोहराया जा रहा है। श्रीमती लालवानी ने कहा कि समाज के दामन पर इस तरह की घटनाऐं ऐसा दाग है। जिसे आसानी से साफ करना संभव नहीं हमारी पीढिया किस तरह से चुकायेगी इसका भी संभवत भान नहीं है। तभी तो तेलगांना के हैदराबाद में महिला पशु चिकित्सक डाॅण् प्रियका रेड्डी के साथ चार लोगों ने दरिदगी कर जलाने की पराकाष्टा को पार किया हो या फिर मध्यप्रदेश के महू में 4.5 वर्ष की मासूम को हवस का शिकार बनाकर उसकी हत्या करने की प्रवृति की है। दिल्ली के निर्भया काण्ड की भयावह घटनाक्रमों को लगातार आगे बढ़ाने की पुनरवृत्ति है। जिससे कानून की शक्ति या नियमों की कठोरता से रोक पाने में हम सफल नहीं हो पाये है। आखिर क्यों तभी तो ऐसी घटना सामने आती रहेगी। हम सब सड़कों पर थोड़ा बहुत विरोध प्रर्दशन करते है। सरकारें भी संसद से लेकर विधानसभा तक चिंता जाहिर कर देती है, अफसोस जता देती है। लेकिन स्थिति सुधरने का नाम नहीं लेती । इसके लिये समाज की अक्रमण्यता या कहे की सवंदनहीनता जिम्मेदार है। प्रशासन भी अपने काम से मशगुल हो जाता है और फिर वापस ऐसी घटना दोहराई जाती है। श्रीमती लालवानी ने कहा कि क्या बेटिया इसी तरह अपनी अस्मत और जिंदगी को यु ही तार-तार होने देगी। और तथा कथित सभ्य समाज इसे अपनी विडम्बना या नियतिमान कर ऐसी ही चुपी साधे बैठा रहेगा। लालवानी ने बताया कि दिल्ली के निर्भयाकाण्ड से लेकर ऐसी घटना क्रमों को रोकने या इसके अंजाम के पूर्व दोषियों में कानून का भय हो हम ऐसी स्थिति निर्मित करने में विफल रहे है। आज भी निर्भया की जान लेने और अन्य ऐसी घटना करने वाले दरिदें सलाखों के पिछे मस्त है और उसी का परिणाम उससे भी बढ़कर तेलगांना में महिला डाॅण् के साथ हुआ क्या ऐसे निर्भया काण्ड जैसे लोगों को 10 वर्षो तक राहत की सांस लेने का मौका मिलना चाहिये नहीं ऐसे दरिदें दया पाने के हकदार नहीं । यह ऐसी घिनोना और जघन्य अपराध है कि अभी तक इनके गले में फाॅंसी का फंदा डल जाना था। शोक संवेदना जताने तक सीमित न होकर निर्भया के दरिदों को जिंदा रखने पर आवाज उठानी थी जब तक इसी तरह दरिदंगी पर त्वरित कानून का पालन कर न्याय नहीं होगा तब तक कानूनी प्रक्रिया में समानता होनी चाहिए कि इस तरह के अपराधों के बाद सभी पीड़ितों को त्वरित न्याय की सुविधा मिले एवं न्याय में विलंब इन अपराधों को प्रोत्साहन देने का बड़ा कारण कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति निरन्तर रुप से आगे बढ़ रही हैं।एवम महत्वपूर्ण बात यह है कि अपराधियों के बालिक नाबालिक होने का मुद्दा उनको निर्भय कांड जैसा प्रतीत होता दिखाई दे रहा है । जिसके कारण देश में इस प्रकार की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही है । हालांकि इस कानून में बदलाव होना लाजमी है आगामी 16 दिसंबर को दुखद निर्भया कांड की बरसी का एक दुखद दिन सामने आ रहा है। जिसको देखते हुए केंद्र सरकार प्राथमिकता के आधार पर इस दिन एक आदेश जारी करें या थोड़ा पहले ऐसा करके 16 दिसंबर को एक साथ सभी जगह दुष्कर्म के दोषियों को फांसी देने का कार्य सुनिश्चित हो नए भारत में महिला सुरक्षा को लेकर देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र जी मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जी कितने चिंतित हैं। इसके व्यापक और न्यायिक उदाहरण प्रस्तुत की देशवासियों को उम्मीद है। जिसके परिणाम 16 दिसंबर या उससे पहले सामने आए तो यह दिन भी देश के इतिहास में एक यादगार दिन माना जाएगा कि निर्भया कांड की बरसी के दिन देश की सभी महिला और समाज की बेटियों को स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार मिले और वे निडर होकर देश में कहीं भी आ जा सके। हमारे समाज में मान बढ़ाती बेटियों के सामने ऐसे वीभत्स दृश्य किये जाते रहेगें । इस पर अंकुश लगना आवश्यक है। नहीं तो माॅं.बहन व बेटिया सुरक्षित नहीं रहेगी।