आजादी के साठ के दशक में जनता के सठियाने से देश त्रस्त हो रहा है
Neemuch 23-06-2018 Editorial
आजादी को प्राप्त हुए अभी 70 साल भी नहीं हुए और लोग लापरवाह होते जा रहे हैं। आज हम आजादी के सही मायने भी नहीं समझ पा रहे हैं एक और समाज में जागरूकता लाने की आवश्यकता है वही आज की युवा पीढ़ी सिर्फ और सिर्फ मूलभूत कार्यों के प्रति सजग है और केवल और केवल अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु ही कार्य करना चाहती है।
जब तक हमारे समाज में यह स्वार्थ भाव हावी होगा, समाज और देश तरक्की नहीं कर सकते आखिर तरक्की होगी भी तो कैसे। देश को तो हम सिर्फ और सिर्फ 15 अगस्त 26 जनवरी के दिन ही याद करते हैं समाज के प्रति हमारी कोई जवाबदारी नहीं है।
आज हर कोई अपने परिवार और अपने भरण पोषण को लेकर चिंतित दिखता है। देश के विकास के प्रश्न पर उसका एक ही उत्तर होता है पहले मैं अपना और अपने परिवार का तो भरण पोषण कर लूं फिर समाज और राष्ट्र की चिन्ता करूंगा। वर्तमान समय में जो हालात बने हैं उसमें मूल्यों का ह्रास देखने को मिल रहा है, इसमें सरकार भी पीछे नहीं है।
शासन जागरूकता लाने हेतु सिगरेट के पैकेट पर लिखवाती है कि इससे कैंसर होता है। धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है।
लेकिन इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं कर पा रहे है। सरकार तंबाकू, बीड़ी, गुटखा एवं सिगरेट जैसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थों पर प्रतिबंध लगा सकती है लेकिन इस ओर कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की जा रही है।
युवा वर्ग भी अपनी भूमिका से कन्नी काटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है।
आज का युवा अपने कर्तव्य पथ से भटक गया है वर्तमान में जहां उसे राष्ट्र के प्रति सजग और सचेत होकर अपना योगदान देना चाहिए वही वह Facebook WhatsApp Twitter जैसे सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर अपना समय व्यतीत करते हुए दिखा रहा है। इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स की कोई उत्पादकता नहीं है लेकिन फिर भी लोगों को वायरल नशे ने बुरी तरह से जकड़ा हुआ है। like, comments और share के जाल में आज का युवा वर्ग बुरी तरह जकड़ा हुआ है।
स्वच्छता की बात हो या समर्पण की बात हो हमारा समाज बैकफुट पर ही नजर आता है।
माननीय प्रधानमंत्री द्वारा गैस सब्सिडी त्यागने के लिए कई बार अपील की गई लेकिन बहुत कम लोगों ने अपनी गैस सब्सिडी का त्याग किया जबकि अधिकांश लोग आज भी उसका फायदा ले रहे हैं।
दूसरी ओर स्वच्छता के लिए पॉलिथीन बैन करने का आह्वान किया गया लेकिन बावजूद इसके किसी प्रकार की कोई सजगता देखने को नहीं मिल रही है पॉलीथिन का उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है और इससे प्रदूषण फैलता जा रहा है दूसरों की ओर आशा भरी निगाहों से देखने से पहले हमें यह निर्धारित करना होगा कि हमारी समाज के प्रति क्या वचनबद्धता है हमें समाज के योगदान में क्या भूमिका निभानी है। जब तक हम स्वयं आगे आकर समर्पण नहीं करेंगे हमें कोई अधिकार नहीं है कि हम किसी और से आशा करें जब तक हम सजग नहीं होंगे कोई और भी हमारे लिए किसी प्रकार की मदद करने में सक्षम नहीं होगा यह जीवन का कटु सत्य है और इस सत्य को समय पर समझ लेना ही जीवन की सार्थकता है।
जब तक हमारे समाज में यह स्वार्थ भाव हावी होगा, समाज और देश तरक्की नहीं कर सकते आखिर तरक्की होगी भी तो कैसे। देश को तो हम सिर्फ और सिर्फ 15 अगस्त 26 जनवरी के दिन ही याद करते हैं समाज के प्रति हमारी कोई जवाबदारी नहीं है।
आज हर कोई अपने परिवार और अपने भरण पोषण को लेकर चिंतित दिखता है। देश के विकास के प्रश्न पर उसका एक ही उत्तर होता है पहले मैं अपना और अपने परिवार का तो भरण पोषण कर लूं फिर समाज और राष्ट्र की चिन्ता करूंगा। वर्तमान समय में जो हालात बने हैं उसमें मूल्यों का ह्रास देखने को मिल रहा है, इसमें सरकार भी पीछे नहीं है।
शासन जागरूकता लाने हेतु सिगरेट के पैकेट पर लिखवाती है कि इससे कैंसर होता है। धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है।
लेकिन इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं कर पा रहे है। सरकार तंबाकू, बीड़ी, गुटखा एवं सिगरेट जैसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थों पर प्रतिबंध लगा सकती है लेकिन इस ओर कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की जा रही है।
युवा वर्ग भी अपनी भूमिका से कन्नी काटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है।
आज का युवा अपने कर्तव्य पथ से भटक गया है वर्तमान में जहां उसे राष्ट्र के प्रति सजग और सचेत होकर अपना योगदान देना चाहिए वही वह Facebook WhatsApp Twitter जैसे सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर अपना समय व्यतीत करते हुए दिखा रहा है। इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स की कोई उत्पादकता नहीं है लेकिन फिर भी लोगों को वायरल नशे ने बुरी तरह से जकड़ा हुआ है। like, comments और share के जाल में आज का युवा वर्ग बुरी तरह जकड़ा हुआ है।
स्वच्छता की बात हो या समर्पण की बात हो हमारा समाज बैकफुट पर ही नजर आता है।
माननीय प्रधानमंत्री द्वारा गैस सब्सिडी त्यागने के लिए कई बार अपील की गई लेकिन बहुत कम लोगों ने अपनी गैस सब्सिडी का त्याग किया जबकि अधिकांश लोग आज भी उसका फायदा ले रहे हैं।
दूसरी ओर स्वच्छता के लिए पॉलिथीन बैन करने का आह्वान किया गया लेकिन बावजूद इसके किसी प्रकार की कोई सजगता देखने को नहीं मिल रही है पॉलीथिन का उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है और इससे प्रदूषण फैलता जा रहा है दूसरों की ओर आशा भरी निगाहों से देखने से पहले हमें यह निर्धारित करना होगा कि हमारी समाज के प्रति क्या वचनबद्धता है हमें समाज के योगदान में क्या भूमिका निभानी है। जब तक हम स्वयं आगे आकर समर्पण नहीं करेंगे हमें कोई अधिकार नहीं है कि हम किसी और से आशा करें जब तक हम सजग नहीं होंगे कोई और भी हमारे लिए किसी प्रकार की मदद करने में सक्षम नहीं होगा यह जीवन का कटु सत्य है और इस सत्य को समय पर समझ लेना ही जीवन की सार्थकता है।