अब समय है हिन्दी-चीनी भाई-भाई के बजाय हिन्दी-चीनी बाय-बाय कहने-करने का
रिपोर्ट- एस.के.लोहानी‘‘खालिस‘‘
जब 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया तब भारतीय सेना ने उसे बुरी तरह से खदेड़ दिया था। चीन की दुष्ट सेना ने हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा लगाते हुए गोलियां बरसाई थी। इस घटना का सजीव चित्रण "हकीकत", "भूल ना जाना" जैसी कई फिल्मों में किया गया था। चीन अब तक सुधरा नहीं और 58 वर्ष बाद फिर पीठ में छुर्रा भोंकने वाला वोही तरीका अपनाकर चीनी सैनिकों ने सिर्फ अपने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को जन्मदिन का तोहफा देने के लिए हमारे सैनिकों से झड़प की और 20 जवान शहीद हो गए। भारत के विरुद्ध वो ऐसा LOC/LAC पर कई बार कर चुका है। फिर भी 1962 में तत्कालीन सरकार ने चीन से शांति वार्ता की,अक्साई चीन पर कब्जा करने दिया और ऐसी दोस्ती बढाई व संधियाँ कर लीं कि भारत को चीन का मुख्य बाज़ार बना दिया जिससे आज हमारे बंपर आयात के दम पर उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत बन गई है। हमारी कमाई से ही वो पाकिस्तान को सहायता देकर आतंकवाद व सीमा पर निरंतर रक्तपात को प्रोत्साहन देता है। उधर वो हमारे घर जैसे नेपाल को भी बिगाड़ रहा है।
दुनिया को कोरोना महामारी देने के कारण भारत सहित 200 देशों को लॉकडाऊन करना पड़ा,लाखों लोग असमय ही मौत की आगोश में समा गए व सबकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई। अभी हम कोरोना संकट से उबरे ही नहीं कि चीन ने लद्धाख में सीमा विवाद व हमले शुरु कर दिए। दोनों देशों के बीच उच्च सैन्य स्तरीय वार्ता के बाद भी चीनी सैनिकों ने हमारे सैनिकों को हाथापाई में मारकर अपनी नीचता दिखाई। उनके भी कई मरे,पर इससे हमारा कोई सरोकार नहीं है, हमारे तो 20 अमूल्य जवान शहीद हो गए ना तो उसका बदला लेना चाहिए या नहीं? उसकी कमर तोड़ने का सही समय है कि नहीं?
इसीलिये अब हर स्तर पर चीन को घेरकर 'हिन्दी-चीनी बाय-बाय' कहने का समय आ गया है। इस कार्य का भारत सरकार ने चीनी संचार उपकरणों के आयात व उपयोग पर रोक लगाकर शुभारंभ कर दिया है। शेष कार्य हम जनता को एक दृढ संकल्प लेकर करना है कि भले किसी चीनी उत्पाद का भारत में विकल्प न हो,हम तय कर लें कि लोकल उत्पाद बनने तक उस चीनी उत्पाद के बिना ही काम चलायेंगे,पर आगे किसी भी स्थिति में चीनी उत्पाद न खरीदेंगे न ही उपयोग करेंगे।
भारत सहित सभी 200 देशों में चीन,चीनी उत्पाद,सोशल मीडिया एप्स के विरुद्ध जबरदस्त माहौल बन गया है,पर हमारे यहां ऐसे मूढ, दुष्ट व अन्धे लोग भी हैं जो हर ओर से आँखें मूँदकर चीनी एप्स का प्रयोग किए ही जा रहे हैं। इन्हें भी स्वयं को सुधारना चाहिए। आप भी खुलकर कहो-हिन्दी चीनी बायबाय । हमारे ही दृढ संकल्प से चीन को करारा सबक मिल सकता है।
अब तो राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रद्रोह की परिभाषाएँ ही बदल गई हैं। अब जो 'लोकल से वोकल' होंगे वो देशभक्त और जो अभी भी चीनी उत्पाद व सोशल मीडिया एप्स उपयोग कर रहे हैं वो गद्दार-देशद्रोही कहलायेंगे। अब ये हम पर निर्भर है कि हम क्या कहलाना पसंद करेंगे?