देवी स्वरूपा स्त्री

JAIPUR 20-10-2020 Devotional

भारतीय संस्कृति में स्त्री को देवी रूप में पूजा जाता रहा है। हमारे पुराणों में एक कहावत श्लोक के रूप में अंकित हैं जिसे हम समय-समय पर सुनते भी हैं -

 यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।

अर्थात जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, जहाँ उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं।

नवरात्रि का त्यौहार देवी के नौ रूपों के पूजन पर आधारित है । नौ रूपों का तात्पर्य उन भिन्न भूमिकाओं से है, जिनका निर्वाह एक स्त्री आज भी, अपने जीवन में अलग-अलग समय पर करती है।
एक स्त्री का संपूर्ण जीवन-चक्र ‘नवदुर्गा के नौ स्वरूपों’ के माध्यम से प्रतिबिंबित होता है---
01. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या 'शैलपुत्री' स्वरूप है।
02. कौमार्य अवस्था तक 'ब्रह्मचारिणी' का रूप है।
03. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह 'चंद्रघंटा' समान है।
04. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह 'कूष्मांडा' स्वरूप में है।
05. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री 'स्कन्दमाता' हो जाती है।
06. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री 'कात्यायनी' रूप है।
07. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह 'कालरात्रि' है।
08.  कुटुंब रुपी संसार का उपकार करने से 'महागौरी' हो जाती है।
09. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि अर्थात 
समस्त सुख-संपदा का आशीर्वाद देने वाली 'सिद्धिदात्री' हो जाती है।

ये विडम्बना ही है कि जिस भारतीय संस्कृति में नारी को आराध्य माना गया है, जहां सदियों से नारी की पूजा होती आई है, आज उन्ही देवी स्वरूपा बेटियों और स्त्रियों पर अत्याचार एवं उत्पीड़न की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हो रहीं है।  
जब तक समाज में बेटियों और महिलाओं का अनादर जारी रहेगा  तब तक दुर्गा पूजा महत्वहीन है अतः इस नवरात्रि में मातारानी की अर्चना के साथ, नारी सुरक्षा एवं सम्मान  का संकल्प लेना चाहिए।  

लेखिका : रोमा चांदवानी ‘आशा’