शहर के गड्ढे कर रहे हैं इंतजार फिर से पुराने गड्ढे उखड़ गए जैसे की परत मोटी उम्र छोटी
✍️रिपोर्ट- कीर्ति वर्रा
जावरा कोई हालचाल पूछे ना पूछे मेरे शहर के लेकिन शहर के गड्ढे हाल-चाल पूछने वाले को अस्पताल तक पहुंचा देते हैं, फिर चाहे मौसम कैसा भी हो। तेज कोहरा होगा तो आप लोगों ने खुद ही देखा होगा की दूर - दूर तक कुछ साफ नजर नहीं आता। जैसे कि दुर्घटना से देर भली कुछ ऐसा ही आलम है। इन दिनों मेरे शहर का पहले भी खबर प्रकाशित की गई थी कि गड्ढों में शहर या शहर में गड्ढे और फिर गड्ढे भी भर दिए गए। जैसे कि परत मोटी उम्र छोटी और फिर कुछ समय के बाद वापस उखड़ गए। तल पपड़ी की तरह जैसे कि तिल में गुड़ कम हो और जमावट ज्यादा, ठीक उस हाथी के दांत की तरह जो दिखने में बड़े दिखाई देते हैं। खाते वक्त पता ही नहीं चलता कि हाथी चबा कैसे रहा है। ऐसा ही कुछ आलम है जावरा चौपाटी से तो बाजार तक का जहां पर की रिपेयरिंग किए हुए गड्ढे भी फिर से दिखाई देने लगे जहां पर कि कई बार अपनी गाड़ी को कंट्रोल करने में राहगीरों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा गड्ढों को देखते हुए जैसे कि जिनका रोज का आवागमन है वह तो इन गड्ढों को इस्क्रिप्ट बेकर ही समझते हैं और रोज की तरह ही चलते हैं गड्ढों से बच संभलते निकलते हुए लेकिन नए राहगीर को क्या पता कि यहां गड्ढे इंतजार कर रहे हो एक नए ग्राहक का जिस का बिल फट सके हॉस्पिटल के बाहर मेडिकल पर जैसे कि गरीबों की कमाई गड्ढों में गवाई अगर मेन द्वार चौपाटी से लेकर बाजार तक अगर वहां की बात की जाए तो फाटक जो लगने के बाद हमेशा बनती आ रही अटकन उसी से थोड़ी दूरी पर बने गड्ढे जैसे कि अधिकारियों के लिए एक खूबसूरत नजारा हो जैसे कि अधिकारियों की गाड़ी गुजरती नहीं हो उधर से लेकिन कभी-कभी फाटक लगने की जल्दी में कुछ लोग इन्हीं गड्ढों में से तेज गाड़ी निकाल कर आदि फाटक लगने के बाद भी जल्दबाजी करते हैं जैसे कि फाटक की समस्या में दबी - दबी सी हे गड्ढों की कहानियां ठीक उसी तरीके से जैसे की फाटक पर लगेगी भीड़ और नहीं दिखाई देंगे गड्ढे और फिर अधिकारियों की नजरों में जैसे कि दिया तले अंधेरा इंतजार कर रही हो अधिकारियों की नजर एक बड़ी दुर्घटना को जैसे कि घटना दुर्घटना होने के बाद लेता है एक्शन एक अधिकारी और फिर भर दिए जाते हैं गड्ढे जिन की परत मोटी उम्र छोटी होती है और वह गड्ढे फिर से नजर आते हैं एक नई घटना दुर्घटना को जन्म देते हुए क्योंकि पहले मेरे शब्दों मैं गड्ढे इतने नहीं थे जितने शहर में गड्ढे नजर आए लेकिन अब गड्ढों से ज्यादा लोग इन गड्ढों का शिकार हो गए गिरते हुए जैसे कि अधिकारियों का आदेश ठेकेदार को जैसे कि शहर की सड़क पर गड्ढों की रिपेयरिंग और फिर ठेकेदार द्वारा जमादी तिल पपड़ी जैसे कि उम्र छोटी और परत मोटी क्योंकि उन्हें पता है सरकारे तो आती जाती रहेगी और वोट पर राजनीति चलती रहेगी और कहीं मुद्दे भी बनते रहेंगे लेकिन नहीं होगा खत्म तो यह सिलसिला लेकिन लगे रहो मेरी कलम के कुछ शब्द कुछ आगे भी बाकी है।