Ratlam 13-05-2018 Regional
रिपोर्ट- कीर्ति वर्रा
मां क्या है ...?
मां किसे कहते हैं ...?
मां की परिभाषा क्या होती है ....?
यह किसी को कहीं पढ़ने समझने या किसी स्कूल में जाकर ,किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं है
मां अपने आप में संपूर्ण ब्रह्मांड होती है ,मां का अस्तित्व निराकार है ,मां शब्द में ब्रह्मा बसा है ,मां शब्द में विष्णु बसा है ,मां शब्द में महेश बसा
मां की गाथा लिखने के लिए समुद्र का जल कम पड़ता है
कलम बनाने के लिए पृथ्वी पर पाए गए समस्त पेड़ों की शाखाएं कम पड़ती है
उस ब्रह्मा का हाथ छोटा पड़ता है ,जिसने पूरी सृष्टि का निर्माण किया और मां का दिल जिस मिट्टी से बना है ,उसका निर्माण करना स्वयं ब्रह्मा का अस्तित्व नहीं है
मां ,जिसकेl स्वयं ईश्वर भी नमन करता है
मां से बढ़कर इस धरती पर ना कोई है और ना कोई होगा !
मां वह होती है जिसके लिए "कोई एक दिन तय करना हम जैसे तुच्छ मनुष्य के बस में नहीं है"
वर्तमान 21वी सदी में भारतवर्ष की संस्कृति पश्चिम देशों से प्रभावित होकर मदर्स डे मनाने में लगी है
परंतु मैं उन लोगों को कहना चाहता हूं जो *मदर्स डे के नाम पर एक दिन मां के साथ बड़े-बड़े फोटो खिंचवाकर, जिस तरह से सोशल मीडिया पर अपने आप को श्रवण बनाने में लगे हैं
क्या उन्होंने 364 दिन मां के हाथ का खाना नहीं खाया ....?
अगर नहीं खाया है ,तो ही वह एक दिन मदर्स डे बना सकते हैं
वर्तमान समय इतना तेज गति से चल रहा है की "मां मॉम बन चुकी है" और आने वाले समय में पता नहीं क्या-क्या दृश्य देखने को मिले
सतयुग के जमाने में श्रवण बेटे जो अपने मां-बाप के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर देते थे परंतु आज श्रवण मिलना तो दूर की बात है "बच्चों का का नाम तक श्रवण नहीं रखा जाता"
कहा जाता है कि "एक मां ने अपने बेटे की प्रेमिका के लिए अपना कलेजा निकालकर, उसके समक्ष रख दिया था और पूछा था कि तुझे कहीं चोट तो नहीं लगी"
परंतु आज के समय में मां की चोट का ख्याल किसी को नहीं है
वर्तमान समय इतना तेज गति से चल रहा है लोग अपने हाथों पर "मां" गोदवाकर कर घूमते हैं और वृद्ध आश्रम में "मां" से मिलते हैं "धिक्कार है" ऐसे लोगों पर l
धर्म चाहे कोई भी हो मां से बढ़कर नहीं हो सकता
मां सर्वोपरि है धर्म ,बाद में
किसी भी धर्म में मां की महत्वता को कम नहीं बताया गया है ,इसलिए मेरी निगाह में 365 दिन मेरी मां मेरे समक्ष रहती है और मैं पूरा वर्ष मदर्स डे मनाता हूं
पश्चिमी परंपरा को मैं नहीं मानता और ना ही किसी को समझाइश दूंगा कि मदर्स डे पर स्पेशली कोई दिखावा करें
"मां कुछ नहीं चाहती,सिर्फ अपने बेटे को खुश देखना चाहती है" " बेटे का फर्ज होता है कि, वह भी अपनी मां को खुश रखें"
"यही है मदर्स डे"
"माँ"
जीती कम हैं, जागती ज्यादा हैं
रूठती कम हैं,मनाती ज्यादा हैं
सजती कम हैं, संवारती ज्यादा हैं
वही हैं जो कभी बिमार नहीं दिखती...
"माँ"
इस छोटे से शब्द में
मेरी पुरी दुनिया समाई है...
"माँ" को special feel कराने मौका कभी ना गवाएँ ...उन्हें हमेशा खुश रखें...क्योंकी माँ "नसीबवालो" को ही मिलती हैं..