ज्ञानोदय ने दी दादा बैरागी को श्रद्धांजलि

Neemuch 19-05-2018 Regional

बैरागीजी थे श्रंगार और अंगार के कविः डाॅ. पूरण सहगल.......

रिपोर्ट- ज्ञानोदय ब्यूरों डेस्क

नीमच। मालव माटी के सपूत, प्रख्यात साहित्यकार, पूर्व सांसद श्री बालकवि बैराजी ने राजनीति और साहित्य दोनों के साथ समन्वय स्थापित किया। वे राजनीति को पैरों की जूती और साहित्य को साफा मानते थे। डाॅ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के अनुसार बैरागीजी के एक फेंफड़े में कृष्ण की बांसुरी और दूसरे फेंफड़े में शंख था। वे श्रंृगार के साथ-साथ अंगार के कवि भी थे। उक्त उद्गार लोक साहित्यकार डाॅ. पूरण सहगल ने ज्ञानोदय महाविद्यालय द्वारा ज्ञानमंदिर महाविद्यालय परिसर में दादा बालकवि बैरागी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए व्यक्त किए।

      डाॅ. सहगल ने कहा कि बैरागीजी सांदीपनी और द्रोणाचार्य की परंपरा के थे। उन्होंने पितामह भीष्म की तरह इच्छामृत्यु का वरण किया। वे मालवा ही नहीं सम्पूर्ण देश के जाने माने कवि थे। उनके नाम से मनासा की पहचान थी। ज्ञानोदय संस्थान के चैयरमेन अनिल चैरसिया ने कहा कि बैरागीजी उत्साह, उमंग और उजाले के कवि थे। उनकी कविताओं में अंधकार से लड़ने की प्रेरणा मिलती है। उनका सूत्र वाक्य था- अंधकार से घबराओ मत, संघर्ष करो और आगे बढ़ो। दादा ने राजनीति में रहते हुए सामाजिक संबंधों का निर्वहन किया। खुद अपने हाथ से पत्र लिखते थे। बैरागीजी के पास पहुँचा कोई भी पत्र अनुत्तरित नहीं रहता। वरिष्ठ समाजसेवी मनोहरसिंह लोढ़ा ने कहा कि दादा बैरागीजी अत्यंत भावुक और सहृदय कवि थे। वे जाति, धर्म और राजनीति से ऊपर उठकर संबंधों का निर्वहन करते थे। दादा का स्नेह सभी को मिलता रहा। उद्योगपति डीएस चैरड़िया ने कहा कि दादा बालकवि बैरागी सकारात्मक सोच के ऊर्जावान व्यक्ति थे। वे खुशमिज़ाज और प्रेरणा देने वाले व्यक्ति थे। विपरीत परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होते थे। मेरी फैक्ट्री में आग लगी, उस समय भी मुझे धैर्य प्रदान करते हुए कहा कि आपकी फैक्ट्री में अग्नि देवता ने प्रवेश किया है, इससे समृद्धि बढे़गी। प्रख्यात चिंतक प्रो. आर.एल. जैन ने बैरागी दादा के लिए कहा कि बैरागी दादा की इच्छा थी कि वे राजनीति के राजरोग से नहीं मरें। अहंकार से कोसों दूर रहकर बालकवि ने सादा जीवन जिया। मालवी बोली में बैरागी की कविताएँ लखारा एवं पनिहारिन महत्वपूर्ण हैं। वहीं उठो देश के लोह लाड़लो, माँ ने तुम्हें बुलाया है, ओजपूर्ण देशभक्ति कविताएँ हैं। तुलिका परिवार के श्रीमती पंकज धींग ने कहा कि बालकवि बैरागी व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व थे। उनकी कविता चाहे सभी सुमन बिक जाएं, पर मैं अपनी गंध नहीं बेचुंगा, एक प्रतिबद्ध संकल्प की कविता है।  वे साहित्य के जगमगाते सूरज रहे। पूर्व विधायक डाॅ. सम्पतस्वरुप जाजू ने कहा कि दादा बैरागी साहित्य के साथ-साथ राजनीति में भी उच्च स्तर पर पहुँचे। उन्हांेने सांसद रहते हुए क्षेत्र को तीन-तीन टीवी टाॅवर, रेल सुविधा एवं अन्य सुविधाएँ प्रदान कीं। वे मंत्री, विधायक, सांसद जो भी रहे, सदैव मुखर रहे। अफीम किसानों को जीरो औसत पर पट्टे दिलाने वाले देश के एकमात्र राजनेता हैं। पूर्व प्राचार्य डाॅ. आरएस वर्मा ने कहा कि बैरागी दादा आधुनिक टेक्नोलाॅजी में विश्वास

करते थे। उन्होंने जाजू काॅलेज में कम्प्यूटर की क्लासें चलवाईं। बेरोजगारी दूर करने के लिए भी उन्होंनेे क्षेत्र में प्रयत्न किए। इनरव्हील क्लब की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सरोज गांधी ने कहा कि बालकवि बैरागी का धर्म साहित्य था और राजनीति उनका कर्म था। उन्होंने धर्म और कर्म के बीच तालमेल बिठाकर अपना जीवन जिया।  मण्डी व्यापारी नवल मित्तल ने कहा कि बैरागी दादा के साथ अनेक यात्राएँ करने का सौभाग्य मिला। दादा का व्यक्तित्व विराट था। वे मुझे पुत्र के समान मानते थे। कृति के किशोर जेवरिया ने कहा कि दादा बैरागीजी कलमकारों को प्रोत्साहित करते थे, उन्होंने नीमच में कलमकार सम्मेलन भी करवाया जिसमें पण्डित मदनलाल जोशी को बुलवाया था। श्रीमती अलका चैपड़ा ने कहा कि बैरागी दादा की कथनी और करनी में कभी अंतर नहीं था। उनके जीवटता थी कि मृत्यु के पूर्व भी उन्होंने नियमित रुप से कार्य किए। पूर्व विधायक नंदकिशोर पटेल ने कहा कि बैरागीजी का व्यक्तित्व और कार्यशैली महान रही है। वे विश्व हिन्दी सम्मेलनों में 5 बार अध्यक्ष रहे। राजनीति में पण्डित नेहरु से लेकर राजीव गांधी तक के बैरागीजी के मधुर संबंध थे। वस्त्र व्यवसायी जिनेन्द्र डोसी ने कहा कि बैरागीजी ने राजनीति से ऊपर उठकर विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के लोगों की मदद की। कपड़े पर लगे टेक्स को वाणिज्य मंत्री से कहकर बंद करवा दिया। रोटरी क्लब के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण शर्मा ने कहा कि दादा कुशल राजनेता होने के साथ-साथ साहित्य मनीषी थे। वे  संबंधों का निर्वहन अच्छी तरह से करते थे। पूर्व प्राचार्य डाॅ. एस.एल. गोयल ने कहा कि बैरागीजी का जीवन संघर्षपूर्ण रहा। उनकी साहित्य साधना अनुपम थी। उन्होंने 30 से अधिक पुस्तकें लिखीं। कृति संस्था अध्यक्ष सत्येन्द्र सक्सेना ने कहा कि दादा बैरागीजी की माँ पर विशेष ममता थी। वे मातृत्व दिवस पर माँ की गोद में चले गए। नईविधा के राजेश मानव ने कहा कि दादा एक पाठशाला थे। अपना काम खुद करते थे। दादा के जाने से क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। प्रो. डाॅ. वीणा चैधरी ने कहा कि दादा बालकवि बैरागी हिन्दी के साथ-साथ मालवी के भी बड़े कवि थे। उनकी कविता पनिहारिन श्रृंगारिक रचना है। बादरवा आइग्या, लखारा आदि बैरागीजी की उच्च कविताएँ हैं जो विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में चल रही हैं। लायंस क्लब पूर्व अध्यक्ष भानु दवे ने कहा कि बैरागीजी की कहानियों के पात्रों में मेरे और परिवार का चित्रण है। बिजुका बाबू, मनुहार भाभी की कहानियाँ आसपास के परिवेश में ली गई है। उनकी प्रसिद्ध कहानी दवे साहब का कुत्ता एवं उठावना एक्सपर्ट है। संस्कृत विद्वान हरीश मंगल ने कहा कि दादा बैरागी का कथन था कि जो समाज अपनी असहमति का सम्मान नहीं करता है, वह चरित्रहीन हो जाता है। साहित्यकार प्रमोद रामावत ने कहा कि दादा का और मेरा लम्बे समय से नाता रहा है। दादा को विभिन्न अवसरों पर देखा। दादा बैरागीजी एक महान साहित्यकार और महान राजनेता थे। साहित्य के क्षेत्र में उनके संबंध दिनकरजी एवं अटलबिहारी वाजपेयी से थे तो राजनीति में जवाहरलाल नेहरु से उनकी निकटता थी। उन्होंने घनश्याम बिड़ला की तरह सरल मृत्यु की मांग की तथा इसमें वे पूरी तरह सफल हुए। कार्यक्रम में प्रो. निरंजन गुप्ता राही, डाॅ. विवेक नागर, प्रकाश मानव, बाबू सलीम, मुकेश कालरा, ओम शर्मा, प्रो. पंकज श्रीवास्तव एवं ज्ञानोदय के कई प्राध्यापकगण आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रो. पंकज तिवारी ने किया तथा आभार ज्ञानोदय शिक्षण समिति की निदेशिका डाॅ. माधुरी चैरसिया ने मानते हुए कहा कि दादा बैरागी मेरे पिता तुल्य थे। उन्होंने मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। दादा बैरागी का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। मैंने दूसरी बार अपने पिता को खो दिया।