पर्यावरण के प्रहरी वन रक्षकों को समर्पित पोस्ट

Ratlam 01-06-2018 Regional

 लेख- अंजली मिश्रा, स्वतंत्र लेखिका

5 जून विश्व पर्यावरण दिवस है.....
 पर्यावरण या जंगल को लेकर सबमे जागरूकता होनी ही चाहिए ।जंगल बचेंगे तो हम बचेंगे ।यूनाइटेड नेशन ने प्लास्टिक  के उपयोग के लिए कहा है या तो  उसको रीयूज करो या  उसको  रीफयूज़ करे।
24मई से वन कर्मी अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर है। जंगल की सुरक्षा में लगे दूरदाज के इलाको में ये पदस्थ होते है जहाँ सामान्य सुविधाएं नहीं होती। इनके कार्य का कोई समय निश्चित नहीं होता। इनकी नौकरी भी पुलिस की तरह ही होती है।लेकिन वनकर्मी पर कर्तव्य तो बहुत से लाद दिए गए है लेकिन अधिकार देने में सरकार कंजूसी कर गई है। वन विभाग के सबसे बड़े मुखिया को हेड ऑफ़ फारेस्ट फ़ोर्स  अर्थात वन बल प्रमुख कहा जाता है लेकिन आज तक शासन द्वारा वनों से सीधे जुड़े अमले को फ़ोर्स का दर्जा मिल नहीं पाया है। फारेस्ट फ़ोर्स सिर्फ नाम भर रह गया है।
वनो की सुरक्षा में जंगली जीव और बेशकीमती लकड़ी दोनों की रक्षा का भार होता है। और यही स्वस्थ पर्यावरण का परिचायक है ।
एंटी पोचिंग डिपार्टमेंट सिर्फ संभाग स्तर पर है जो की वन जीवो की तस्करी रोकने के लिए बनाये गए है।जब कुख्यात अपराधी जंगल में जानवरों के शिकार के लिए घुसते है तो फारेस्ट गार्ड के पास एक बंदूक उसे डराने के लिए मिली है लेकिन किसी भी स्थिति में वो उसको चला नहीं सकता ।एक ड न्डे से ही वन जीव और इमारती लकड़ी सागौन ,साल सीशम ,चन्दन की रक्षा उसे करनी है।
अगर हम नेशनल पार्क की बात करे तो वहां भी वन कर्मियों की बुरी हाल है सुबह 5बजे की गश्ती प्रारंभ करने  से रात जितने तक की उसकी सेवा अवधि रहेगी वो सिर्फ उस दिन के काम पर निर्भर करता है ।यहाँ भी कर्मी दोहरी भूमिका निभा रहा। जंगल की सुरक्षा करे, जंगल की आग से बिना संसाधनों के  सुरक्षा करे , फिर तस्करों से सुरक्षा ,फिर आने वाले पर्यटकों की टिकट से लेकर आने वाले वी  आई पी गेस्ट की सेवा  में कोई व्यवधान न हो इसका भी ध्यान  उसे ही रखना होता है।कान्हा और बांधवगढ़ जैसे नेशनल पार्क टूरिस्ट और वी आई पी गेस्ट से भरे रहते है।
लेकिन कर्मचारियों की कमी उनके सेवा शर्तों की अनियमितता और सेवा के घंटे सब वन कर्मी को हड़ताल करने मजबूर कर रहे।
इतना वन क्षेत्रों में जूझने और रात दिन वन व वन्यप्राणियों की सुरक्षा में लगे होने के बाद भी एक माह का अतिरिक्त वेतन पाने की मांग पर सरकार को विचार करना चाहिए।क्या वन्य जीवों की तरह ही वन कर्मचारी को भी मूक बने रहना चाहिए अपनी तकलीफे सरकार तक नहीं पहचाना चाहिए।
जब पुलिस का सिपाही की भर्ती होती उसे पूर्ण वेतन मिलता है। जबकि वन कर्मी को बगैर प्रशिक्षण वन क्षेत्रों में सेवा के लिए  उतार दिया जाता है उनसे पूरा काम लिया जाता है जबकि वेतन अप्रशिक्षित कर्मचारी का ही मिलता है ।अप्रशिक्षित कर्मचारी से आप सेवा पूरी ले रहे लेकिन वेतन में कंजूसी क्यों?
ऐसी तमाम मांगो को लेकर वन कर्मी हड़ताल पर है सरकार को इनकी हड़ताल खत्म करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए। क्योंकि वनों व वन्य जीवों की सुरक्षा दांव पर है और आज उनकी हड़ताल के 9 दिन दिन बीतने के बाद भी हड़ताल खत्म करने के लिए कोई  सकारात्मक बातचीत अब तक होती नज़र नहीं आती।
कितने वन कर्मी वनों की सुरक्षा में लगे है और सुरक्षा करते हुवे मारे गए है लेकिन इस पर हल्ला कभी ज्यादा नहीं हुवा । क्योंकि वो किस हाल में वनों की सुरक्षा कर रहे है वो कभी बताए नहीं। हाल के वर्षों में जंगलों की सुरक्षा में महिला फारेस्ट गार्ड ,महिला रेंजर की भी भर्ती हुई है ।उनकी खुद की सुरक्षा ऐसे दूरस्थ इलाको में दाव पर लगी होती है।अभी पिछले महीने ही  कर्नाटक के जंगल में एक वन संरक्षक की मौत हाथी द्वारा कुचल जाने से हुई है।ग्वालियर में एक वन कर्मी जो अवैध रेत उत्खनन रोकने का प्रयास कर रहा था उसपर ट्रैक्टर चढ़ा दिया गया और उसकी मौत हो गई। कहानी बहुत सी मिल जाएंगी जब वन कर्मी ने अपनी जिंदगी दाव पर लगा दी । लेकिन उनके जीवन का मोल सरकार को समझना चाहिए और उनकी मांगों को जल्द निपटाना चाहिए।आशा है इनकी मागे पूरी होंगी।