हौसंला- पशुपतिनाथ मंदिर में द्वारपाल बनीं बेटियां

Neemuch 04-06-2018 Regional

एक तरफ परिजनों की संकीर्ण मानसिकता थी,दूसरी तरफ बेटियों के अरमान। पर जब अपने ही साथ देने से मना कर दें,तो अरमानों की बलि चढ़ना स्वाभाविक है। ऐसा ही हुआ था इन दोनों बेटियों के साथ। परिजनों ने बचपन मे बाल विवाह कर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया।अब उन्हें बेटियों के अरमानों की कोई फिकर नहीं थी।निरास बेटियों ने प्रशासनिक सहयोग से अपने अरमानों को पूरा करने की ठान ली।आज दोनों बेटियां बाल विवाह के बंधन से मुक्त होकर दूसरों के लिये प्रेरणा बन चुकीं है.......

रिपोर्ट- ब्यूरों डेस्क

मन्दसौर। गलियाखेड़ी निवासी गिरिजा का बाल विवाह उसके परिजनों ने 15 वर्ष की आयु में कर दिया था। विवाह के 10 माह बाद ही गिरिजा ने महिला सशक्तिकरण कार्यालय में आवेदन देकर अपना बाल विवाह शून्य कराने का निवेदन किया। कलेक्टर एवं बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी के निर्देश पर बाल संरक्षण अधिकारी राघवेंद्र शर्मा ने वादमित्र के रूप में बाल विवाह निरस्त कराने का आवेदन कुटुंब न्यायालय में प्रस्तुत किया। न्यायालय से गिरिजा का बाल विवाह शून्य किया गया।
 
सारे अरमान टूट चुके थे......
निम्बोद निवासी ललित मीना का कहना है कि पिता की मृत्यु के बाद परिजनों रिस्तेदारों ने मिलकर मेरा 13 वर्ष की उम्र में बाल विवाह कर दिया था।राजस्थान निवासी जिस लड़के के साथ विवाह हुआ था वह पूर्व से विवाहित था।मेरा जीवन तो अब पूरी तरह से नरक बन चुका था।मैंने ससुराल से वापस आकर अपनी मां को पढ़ाई के लिये मनाया।वह पढ़ाने के लिये तैयार हो गई,किंतु ससुरालीजन तथा परिजन पढ़ाई के पक्ष में नहीं थे।जैसे तैसे मैने सभी को 10 वी तक की पढ़ाई के लिये सहमत किया।एक दिन स्कूल में मुझे बाल विवाह के बंधन से मुक्त होने की जानकारी लगी तो मैने हिम्मत जुटाई महिला सशक्तिकरण के बाल संरक्षण अधिकारी के माध्यम से अपना बाल विवाह शून्य कराया।

हौसला हो तो सब संभव है......
गलियाखेड़ी निवासी गिरिजा बैरागी ने बताया कि उसके परिजनों ने संकीर्ण सामाजिक सोच के चलते 14 वर्ष की उम्र में ही उसे विवाह बंधन में बंध दिया था।जिससे मेरे सारे अरमान टूट चुके थे, क्योंकि ससुरालीजन चाहते थे कि में चौका-चूल्हा देखूं और खेती के कार्यों में हाथ बटाउं,पर में पढ़ाई करना चाहती थी।में मजबूर और निराश हो चुकी थी।मुझे स्कूल से जानकारी मिली कि बाल विवाह शून्य हो सकता है। मैने महिला सशक्तिकरण में संपर्क किया,जहां से मुझे हौसला मिला।मेरा बाल विवाह शून्य हुआ।विभाग के माध्यम से में स्नातक कोर्स भी कर रही हूं और मुझे सुरक्षागार्ड की ट्रेनिंग भी दिलाई गई।आज में पशुपतिनाथ नाथ मंदिर में सुरक्षा गार्ड के रूप में तैनात हूँ।यह मेरे लिये गौरव का विषय है।

यह बेटियों के हौसलों की जीत है......
जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी रविन्द्र महाजन ने बताया कि बाल विवाह एक ऐसा सामाजिक अपराध है जिसमें व्यक्ति अपने ही बच्चों के अरमानों को कुचल देता है।हर माता पिता चाहता है कि उसकी संतानें प्रगति की ऊंचाइयों को छुएं,ताकि उनका नाम रोशन हो। इसके विपरीत आज भी समाज मे कुछ ऐसे माता पिता भी है जो बच्चों के प्रति अपनी जवाबदेही से बचते है।परिजनों ने बालिकाओं के हौसलों के पर काटने का काम किया था।प्रशासनिक सहयोग से बालिकाओं के हौसलों को नव उर्जा मिली है। महिला सुरक्षा गार्ड का प्रशिक्षण जिले का नवाचार है। प्रदेश में पहली बार प्रशासनिक स्तर पर इस प्रकार का प्रशिक्षण दिया गया है।