मंदसौर किसान गोलीकांड में जैन आयोग का बडा फैसला पुलिस व सीआरपीएफ को दी क्लीनचिट, रिपोर्ट में गोली चालन को बताया न्याय संगत

Mandsaur 19-06-2018 Regional

रिपोर्ट-ब्यूर्रों डेस्क

मन्दसौर। मंदसौर गोलकांड में 5 किसानों को गोली मारने वाले पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों को जस्टिस जे.के. जैन आयोग ने क्लीचचिट दे दी है। 9 महीने देरी से आई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन परिस्थितियों में भीड़ को तितर-बितर करने और पुलिस बल की जीवन रक्षा के लिए गोली चालन नितांत आवश्यक और न्यायसंगत था। आयोग ने गोलीकांड में निलंबित हुए कलेक्टर स्वतंत्र कुमार और एसपी ओपी त्रिपाठी को भी सीधे तौर पर दोषी नहीं ठहराया है। केवल इतना भर लिखा है कि पुलिस और जिला प्रशासन का सूचना तंत्र कमजोर और आपसी सामंजस्य भी नहीं होने के कारण आंदोलन उग्र हुआ। किसान और अफसरों के बीच संवादहीनता के कारण जिला प्रशासन को उनकी मांगों और समस्याओं की जानकारी नहीं थी और उन्हें जानने का प्रयास भी नहीं किया गया। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि गोली चलाने में पुलिस ने नियमों का पालन नहीं किया। पहले पांव पर गोली चलाना चाहिए थी, लेकिन इसका ध्यान नहीं रखा गया। आयोग ने मुख्य सचिव को बंद लिफाफे में 11 जून को रिपोर्ट सौंपी थी। ये रिपोर्ट 11 सितंबर 2017 को सरकार को सौंपी जानी थी। सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव प्रभांशु कमल ने इस रिपोर्ट पर कार्रवाई के लिए गृह विभाग के प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव को दो दिन पहले ही यह रिपोर्ट दी है।

जांच आयोग के सूत्रों के अनुसार 13 पेज में 54 बिन्दुओं में रिपोर्ट का सारांश दिया गया है। इसमें कहा गया है कि 6 जून 2017 को महू-नीमच फोरलेन पर बही पाश्र्वनार्थ फाटे के पास चक्काजाम किया था। मुंह पर कपड़ा बांधकर असामाजिक तत्वों ने आंदोलकारियों के साथ शामिल होकर तोडफ़ोड़ शुरू कर दी। तकरीबन 12.30 बजे तत्कालीन सीएसपी सांई कृष्णा थोटा पुलिस और सीआपीएफ बल के साथ पहुंच कर चक्काजाम खुलवाने का प्रयास किया। इसी बीच आसमाजिक तत्वों ने सीआरपीएएफ के एक एएसआई सहित 7 जवानों को घेर लिया। उन पर पेट्रोल बम फेंके  और मारपीट की। आरक्षक विवेक मिश्रा को जमीन पर गिराकर रायफल छीनने का प्रयास किया, उन्हें बचाने गए आरक्षक उदय प्रकाश और अरुण कुमार को  गिराकर रायफल छीनने लगे। भीड़ ने एएसआई बी शाजी को भी पकड़ लिया। स्थिति नियंत्रण से बाहर जाते देख गोली चलाने की चेतावनी दी, इसके बाद आरक्षक विजय कुमार ने दो गोली चलाई, जिससे कन्हैयालाल और पूनमचंद की मौत हो गई। एएसआई शाजी ने तीन तो अरुण कुमार ने दो गोली चलाई जो मुरली, सुरेन्द्र और जितेन्द्र को लगी, तीनों गंभीर रुप से घायल हुए। इसी तरह थाना पिपल्यामंडी में घुसकर तोडफ़ोड़ करने वाले आंदोलनकारियों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस आरक्षक प्रकाश ने 4, अखिलेश ने 9, वीर बहादुर ने 3, हरिओम ने 3 और नंदलाल ने 1 गोली चलाईं। इसमें तीन लोग चेनराम, अभिषेक और सत्यनारायण मारे गए। इसके अलावा रोड सिंह, अमृतराम और दशरथ गोली लगने से घायल हुए.

आयोग की जांच के मुख्य बिन्दु.....
सीआरपीएफ की गोलियों से 2 किसानों की मौत और 3 घायल।
पुलिस की गोलियों से 3 किसानों की मौत और 3 घायल। 
सीआरपीएफ और पुलिस का गोली चलाना न तो अन्याय पूर्ण है न ही बदले की भावना से उठाया गया कदम।
मजिस्ट्रेट की अनुमति लेने के बाद ही थाना पिपल्याहाना थाना प्रभारी ने पहले लाठी चार्ज बाद में गोली चलाने के आदेश दिए।
बही पाश्र्वनाथ फाटेे पर कोई भी किसान नेता मौजूद नहीं था, ऐसी स्थिति में पूरा आंदोलन असामाजिक तत्वों के नियंत्रण में आ गया था।

जिला प्रशासन-पुलिस पर ये उठाए सवाल.....
जिला प्रशासन ने घटना के पूर्व जो कदम उठाए वो पर्याप्त नहीं थे। 
किसानों और अधिकारियों के बीच संवादहीनता के कारण किसानों की मांग और समस्याओं की जानकारी नहीं थी, इसे जानने का प्रयास भी नहीं किया।
जिला प्रशासन का सूचना तंत्र कमजोर था। मंदसौर मुख्यालय से 13 किमी दूर 1०.३० बजे चक्काजाम किया, सूचना 2 घंटे बाद 12.30 पर मिली। इससे स्थिति ज्यादा बिगड़ी।
5 जून को आंदोलनकारियों ने कई घरों में तोड़-फोड़ कर आगजनी की थी, आंदोलनकारियों पर तत्काल प्रभाव से कार्रवाई की जाना चाहिए थी जो कि नहीं की गई। जिला प्रशासन ने स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया।
5 जून की घटना को देखते हुए प्रशासन ने पर्याप्त मात्रा में अग्निशामक उपाय नहीं किए।
आंदोलन के पूर्व जिला पुलिस ने भी असामाजिक तत्वों को पकडऩे में रुचि नहीं दिखाई। 
कलेक्टर ने एसपी को ओदश दिया था कि पुलिस बल के साथ कार्यपालक मजिस्ट्रेट और वीडियोग्राफर को भेजा जाए, लेकिन सीएसपी थोटा के साथ न तो मजिस्ट्रेट भेजा न ही वीडियोग्राफर।
जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन में सामंजस्य नहीं दिखा। सीएसपी थोटा ने गोली चलने की तत्काल समय पर सूचना दी होती तो शायद पुलिस थाने की दूसरी गोली चलने की घटना को रोका जा सकता था।
अप्रशिक्षित पुलिस बल से भीड़ को तितर-बितर करने आंसु गैस के गोले चलवाए गए जो असफल साबित हुए।
घटना के महत्वपूर्ण साक्ष्य सीआरपीएफ के अधिकारियों और जवानों की जली हुई वर्दी, जूते और रायफलें घटना के 13 दिन बाद जब्त किए गए। 

211 गवाहों के बयान.....
आयोग ने घटना के 100 दिन बाद अपनी कार्रवाई शुरू की और 211 गवाहों के बयान लिए जिनमें 185 आम जनता से थे और 26 सरकारी गवाह थे। 
आयोग के समक्ष सरकारी गवाहों का प्रतिपरीक्षण वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने किया था। 20 सितंबर को आयोग ने अपना काम शुरू करते हुए पहला बयान दर्ज किया।
अंतिम गवाह के रूप में 2 अप्रैल 2018 को तत्कालीन मंदसौर कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह के बयान दर्ज किए गए।

5 लोगों की हुई थी मौत.....
इन दोनों स्थानों पर हुए गोली चालन में बबलू जगदीश पाटीदार उम्र 25 वर्ष ग्राम टकरावद जिला मंदसौर, कन्हैयालाल धुरीलाल पाटीदार उम्र 38 वर्ष ग्राम चिल्लोद पिपलिया जिला मंदसौर, चेनराम गणपतलाल पाटीदार उम्र 22 वर्ष नया खेड़ा जिला नीमच, अभिषेक दिनेश पाटीदार उम्र 25 वर्ष ग्राम बरखेड़ा जिला मंदसौर, सत्यनारायण मांगीलाल गायरी ग्राम लोद जिला मंदसौर की मृत्यु हो गई। सरकार ने इन सभी को 1-1 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया था