अमीरी गरीबी में तोला जा रहा शिक्षा को

Ratlam 19-06-2018 Regional

रिपोर्ट- कीर्ती वर्रा

रतलाम। मेरा उद्देश्य किसी अमीर आदमी पर उंगलियां उठाने का नहीं है। बात सिर्फ सिस्टम की है ।क्योंकि सिस्टम से जुड़ा गरीब भी है, क्योंकि बात अगर सरकारी स्कूलों से की जाए तो अधिक से अधिक संख्या में विद्यार्थी सिर्फ गरीबों के बच्चे ही मिलेंगे जिन्हें सुविधा तो सारी मिलती है। सरकारी योजनाओं की आखिर फिर क्यों प्राइवेट शिक्षा के बराबर खरा नहीं उतरता। एक विद्यार्थी और जो विद्यार्थी सरकारी स्कूलों में पढ़ाई को लेकर खरे उतरते हैं। जीन माता पिता के बच्चे वह बच्चों को मंजिल तक पहुंचाने के लिए प्राइवेट स्कूल में डाल देते हैं। दिन रात मेहनत करके और बच्चा भी बड़े लगन से पढ़ लिख कर एक शिक्षित तो बन जाता है, लेकिन वही से उसकी शुरूआत होती है। बेरोजगारी का पहला कदम शायद आपने देखा होगा कि मेरे शहर में काफी बेरोजगार घूम रहे है। नौकरी को लेकर ऐसे कई बच्चे मिल जाएंगे सरकारी स्कूलों में जिनके के अंदर काबिलियत होती है। वह पढ़ लिखकर बेरोजगार बन जाते हैं  और जो बच्चे पढ़ने में कमजोर होते हैं उन्हें भी माता पिता द्वारा लगा दिया जाता किसी फैक्ट्री में में मजदूरी के लिए फिर चाहे वह नाबालिक ही क्यों ना हो क्योंकि माता पिता को पता है की पढ़ा लिखा कर बेरोजगार बनाने से तो अच्छा है की अभी से ही मेहनत मजदूरी क्यों न करवाई जाए क्योंकि हर माता पिता चाहते हैं कि अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाए, लेकिन अब तो उन्हें भी पता चल चुका है कि बिना सिफारिश के कोई काम नहीं होता मेरे शहर में और सबसे खास बात यह है कि बेरोजगारी के कारण कुछ  शिक्षक प्राइवेट स्कूल में बच्चों को विद्या ग्रहण करा रहे हैं। जिनके तनख्वाह काफी कम होती है। लेकिन उन बच्चों को पढ़ाते हैं जिन बच्चों के माता-पिता सरकारी अधिकारी होते हैं यह तो कुछ भी नहीं है। कुछ सरकारी शिक्षक भी है जिनके बच्चे प्राइवेट स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते हैं। क्या उन्हें सरकारी स्कूलों पर भरोसा नहीं या फिर हम यह कह सकते हैं कि उन्हें अपनी शिक्षा पर वजह जो भी हो लेकिन यह सोचने का विषय है क्योंकि आपने अक्सर देखा होगा की अधिकारी का बेटा अधिकारी नेता का बेटा नेता ऐसे कई उदाहरण है। मेरे पास देने के लिए जहां एक तरफ सरकार बड़े बड़े वादे करती है कि हमारे लिए सब एक समान है तो फिर विद्या के मंदिर के दो दरवाजे क्यों जैसे कि सरकारी शिक्षक के मंदिर में गरीब बच्चा शिक्षा ग्रहण करता है और  दूसरी तरफ  प्राइवेट  स्कूलों में अमीरों के बच्चों को पढ़ाने वाला भी एक बेरोजगार है। जो कि  बच्चों को शिक्षा ग्रहण कराने के बाद भी काफी कम  तनख्वाह में काम करता है। मतलब साफ है कि जितने माता-पिता बच्चों को पढ़ाने में खर्च करते हैं। वह बच्चा पढ़ लिखने के बाद इतना नहीं कमा पाता जितने की माता पिता की उम्मीद होती है। इसीलिए एक तराजू में दो चीज को ना तोले अमीरी और गरीबी....