कम उम्र के बच्चे और भारी बैग बुद्धि का
रिपोर्ट- कीर्ति वर्रा
रतलाम। स्कूल खुलते ही कई विद्यालयों में आप सभी बच्चों के ऊपर उठाया हुआ बैग जो कि काफी भारी होता है। नजर आ जाएगा हम ऐसा कह सकते हैं कि बुद्धि से ज्यादा बोझ है। उनके ऊपर अगर देखा जाए तो समय के साथ-साथ बहुत कुछ बदल गया है। लेकिन घड़ी का वक्त वही है। बस समय बदल गया पर हर कोई समय के साथ-साथ कमाने में इतना व्यस्त हो चूका है कि उसे किसी से कोई मतलब नहीं। अगर समय पूछा जाए उसे तो उसके पास समय नहीं बताने के लिए अगर पुराने दौर की बात की जाए तो बच्चों को सरकारी स्कूल में एडमिशन करते समय मास्टर जी कुछ इस तरह बच्चे की उम्र का अंदाजा लगा लेते थे। बस किसी भी तरह बच्चे अपने हाथों से अपने कान को छू ले। लेकिन आज के दौर का पन्ना पूरी किताब को पढ़ने पर मजबूर कर दिया है। जैसे कि पुराने दौर में बच्चों की उम्र ज्यादा और किताबें कम हुआ करती थी। लेकिन आज के दौर में किताबों का वजन ज्यादा है। बैग को उठाते हुए और बच्चों की उम्र कम नजर आती है। मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि कम उम्र के बच्चों को विद्या ग्रहण ना कराएं। जबकि कहने का तात्पर्य सिर्फ यह था कि बच्चों को जितनी विद्या हर दिन मिलती है क्या उससे अधिक बोझ नहीं है बच्चों के ऊपर बैग का ?